a little of everything... [Bharat Mélange ™]
Sunday, June 4
A jar of sugar cube and IMFL whiskey
Sunday, March 4
बेख्याली के कुछ क्षण
यादों को संभालना कैसा होता होगा,
जबकि मेरे पास तुम्हारी कोई निशानी नहीं....
कुछ पल है खट्टे मिट्ठे से, आधे कच्चे से...
कुछ बुरे और कुछ अच्छे से ....
लेकिन निशानी के तौर पे कुछ नहीं�!!!
एक शाम है रौशनी वाली,
एक दिन है पसीने से लथपथ
एक मुस्कान तुम्हारी बंद है मेरे आँखों में
कुछ अधूरे से सपने है साखों में...
लेकिन निशानी के तौर पे कुछ नहीं!
सुरीली और धमकी वाली आवाज़
बंद है जेहेन में कही....वहाँ से भी हुक्म चलाती है...
वो पहली बार की, मेरे रोएँ की सिरहन साथ है
फोन पे वो बितायी पहली पूरी रात है!
लेकिन निशानी के तौर पे तो कुछ भी नहीं!!
Wednesday, February 15
एक बेचारी लड़की
तुम कॉल करती हो, मैं काट देता हूँ
डिस्कनेक्ट भर कर के, सोच लेता हूँ
छु लिया तुम्हारी बच्चों के जैसी उँगलियों को,
जिसने मेरा फोन मिलाया है!
उरद दाल के पकोड़े के तरफ देखता भी नहीं,
नहीं, अब वो तुम्हारी याद नहीं दिलाती
बस रुला देती है, छलका देती है...
और, पकोड़े और भी नमकीन हो जाते है!
मैं अब तेज बाईक भी नहीं चलाता
तुम्हारे कहने पे नहीं, बल्कि अपनी वजह से
अब तेज चलने पे अब कोई डरता नहीं
न ही जोड़ से कोई पकड़ता है, पीछे से....!!
अब रात में मैं सारे लाइट जला के सोता हूँ..
तुम्हारे सपनो से डर लगता है
हमेशा झगड़ते है हम, मेरे सपनो में
और जीवन भर साथ भी रहते है! उफ़फ...
अब जाता नहीं उस रेस्तराँ में,
तुम्हारी वजह से...सिर्फ तुम्हारी वजह से
एक बार ठूस ठूस कर खिलाया था तुमने
उठ तक नहीं पाया था मैं खुद से!
अब मैं सिगरेट के ब्रांड भी बदल के पीने लगा हूँ
तुमने एक दफा मेरे ब्रांड की सिगरेट पी ली थी..
और मेरे जन्मदिन पे तोहफे में,
उस ब्रांड के कई खाली डिब्बे भेजे थे!
(कसम से, खाली था...या तो फिर डाकिये ने पी लिए होंगे)
अब व्हिस्की ऐसे ही पीता हूँ, बिना मिलावट के
क्यूँकी आइसक्युब में तुम्हारा चेहरा नज़र आता हैं,
वैसे ही चिकनी, और आँखे वैसी ही शराबी
तुम्हारी कमी ने पीना सीखा दिया!
अब इस शहर में बरसात अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे शहर ने बहुत सारी दूरियाँ बना दी है
मैंने पहले ही तुम्हे चेताया था, मेरे डर हमेशा सच हुए है
अब मुझपे इस बात का भी दोष मत मढ़ देना!
समय का अब अंदाज़ नहीं रहता...
बस वही एक चीज़ मांगी थी तुमसे
लेकिन, तुम जिद्दी तो हमेशा से थी...
मेरी बात मानी ही कब थी....जो अब मानती!
एक मोबाइल प्रदाता के इश्तिहार में देखा था
"आप अपनों से कभी जुदा नहीं होते हमारी दुनिया में"
ऐसा वादा क्यों नहीं किया तुमने...
खैर, खुश रहो तुम अपनी दुनिया में!!!
शिकायतों का सिलसिला
शिकायतें तो होंगी तब भी, जब हम ना होंगे...
वैसे ही, जब तुमने मुझसे नहीं, एक चोले से प्यार किया था!
बेशक तुम हमपे बदल जाने का आरोप थोपो
बदले तो हम तब भी थे, जब तुमसे इश्क किया था...
निगोड़ी इश्क का फितूर ही कुछ ऐसा है जानेमन....!!!