Wednesday, December 9

"At the stroke of midnight..."

विडम्बना यही से शुरुआत होती है, की मै हिंदी भाषी राज्य से आता हूँ, घर में माँ-पिता सब आपस में हिंदी में ही वार्तालाप करते है, लेकिन मेरा शिक्षण एक अंग्रेजी माध्यम विद्यालय से पूर्ण हुआ| खैर आजकल ये हर माँ बाप का यही सपना होता है, मै उन्हें ही क्यों दोष दूं, समाज की चाल ही कुछ ऐसी हो गयी है| हमारा हिंदी प्रेम तब ही जागृत होगा जब कुछ पश्चिमी देश इस भाषा को कुछ महत्व देना आरम्भ कर देंगे, हमारा आयुर्वेद, योग, मसाला प्रेम भी कुछ ऐसे ही आरम्भ हुआ| घर की मुर्गी तो होती ही है दाल बराबर| अब देख लीजिये, इस देश के सर्वप्रथम प्रधान मंत्री ने भी स्वतंत्रता पाने पे सदन में इन शब्दों से अपना वक्तव्य दिया था, "At the stroke of midnight..."|

अब हमारा आपस में भी वार्तालाप करने का जरिया एक भारतीय भाषा नहीं, कोई और भाषा बनता जा रहा है| अख़बार हमें अंग्रेजी चाहिए, क्युकी हिंदी अख़बार में तो 'मसाला समाचार' होता है, और जो नहीं भी होता, उसे भी मसालेदार तरीके से ही प्रस्तुत किया जाता है| समाचार चैनल को ही देख लीजिये| विश्वास नहीं होता तो घर या ऑफिस जहा भी बैठे है, वहा तो आसपास देखिये ही, बाहर निकल भी देख लीजिये...बाजार में, सिनेमाघरों में, सरकारी दफ्तरों में भी, अजी छोडिये भी साहब, क्या क्या गिनेंगे, अपने जेब में ही देख लीजिये, आपको अंग्रेजी ही अंग्रेजी दिखेगी, यदि कुछ देवनागरी लिपि में दिख जाये तो सहेज लीजियेगा, शायद २५-३० साल बाद आपको एक मुहमांगी कीमत मिल जाए| जब सदन में एक-आध व्यक्ति ये तक कहने को मजबूर हो जाए की उन्हें ये प्रतीत होता है, वो भारत के सदन में नहीं, इंग्लैंड के सदन में है, तो बाकी क्या कह सकते है | शायद, उन्हें अंग्रेजी न समझ/बोल पाने का दुःख हो रहा होगा, इसी चीज़ को छुपाना चाह रहे होंगे| अब तो हिंदी सिनेमा के दस में से सात गानों में अमूमन आपको अंग्रेजी मिल जायेगा, यदि आप पूर्ण रूप से हिंदी भाषी है तो फिर तो आप अपने आप को बदलिए, अंग्रेजी सीखिए, वरना ये देश छोड़ दीजिये| खैर mujhe ऐसा नहीं लगता की देश छोड़ने की जरुरत पड़ेगी, अब तो बिहार के छपरा जिला के एक गाँव में रहने वाली मेरी दादी भी 'adjust' करती है, और दादा 'tension' लेना छोड़ दिए है, हिंदी शिक्षा ग्रहण किये हुए मेरे माँ-पिता भी 'excellent', 'super-duper' 'good-morning-to-good night', हो गए है| क्या करे नहीं तो लोग उन्हें पिछड़ा समझ लेंगे| अजी, बाकियों को छोडिये, जो रसोइया मेरे आती है, वो भी "missed call " देने के बाद ही आती है, और 'बहुत late होने से पहले चली जाती है'| वो अलग बात है, 'वार्तालाप' का मतलब उसे नहीं पता, हो भी क्यों भला, अब 'India Shining' कर रहा है, तो क्यों पीछे रह जाए कोई तबका| NDTV के रविश जी के ब्लॉग पे ही देख लीजिये, गाजियाबाद में ली गयी कुच्छ तस्वीरो में उन्हें अच्छे से दरसाया है, कैसे उनके परोस में एक छुट मिल रही है, "250 rupees के खरीद पे, एक हाथ में मेहँदी Free", एक दुसरे तस्वीर में, "Rent ही Rent . Sale. Purchase. Renting."| अब इसमें वो भी क्या करे, जब सारे चीजों पे, सत्तू से लेकर नमक पे अंग्रेजी में लिखी होती है, तो मेहँदी और rent क्यों बच जाए, अब तो मुझे भी ग्लानी हो रही है, मै अभी भी मकान किराया या भाड़ा ही देता हूँ, rent नहीं, चलिए कोशिश करता रहूंग बदलने की| मै अंग्रेजी के खिलाफ नहीं हूँ, मै अंग्रेजी में लिखता बोलता हूँ, लेकिन अपनी भाषा का ज्ञान तो होना चाहिए, अपनी भाषा बिना मिलावट वाली, मै तो कहता हूँ, सबको अपनी मिटटी की भाषा, राजभाषा, अंग्रेजी(महानगरीय-cosmopolitan) भाषा के साथ साथ दो चार और भाषा आनी चाहिए| लेकिन, ये तो हमारे विवेक पे निर्भर है....

अब देखिये ना, प्रबनंधन संस्थानों में एक निति समझाई जाती है, 'Demand-Supply Chain', अब इसे हिंदी में हजारो वर्ष पहले चाणक्य ने क्या कहा था, मत पूछ बैठिएगा, उस पर पश्चिमी देशो ने अभी शोध नहीं किया, और वापस ना ही हमे बताया, वरना मै जरुर बताता| खैर मुद्दे की बात ये है, की यदि मांग है नहीं इस भाषा की तो क्यों कोई हिंदी में लिखेगा, क्यों कुछाध लोग अभी भी एक दुसरे प्रेमचंद के इन्तेजार में बैठे है, अब न बेनीपुरी जी आयेंगे, ना ही प्रेमचंद| अब तो 'तू बन गया hep सोह्निया' का जमाना है, तो सभी hep बनेंगे ही या बनाना चाहेंगे ही| खैर यदि आप अपने बच्चो का भविष्य उज्जवल करना चाहते हो तो समय अच्छा है, अभी भी काफी सारी अच्छी हिंदी पुस्तके आपको बाजार में मिल जाएँगी, और हां अंग्रेजी के किताबो के १/१०वे मूल्य पर, तो जल्दी इन्हें खरीद लीजिये! नहीं, नहीं भाई, गलत मत समझिये, बच्चो को ये किताबे पढ़ाने को नहीं कह रहा हूँ, शायद आपको और मुझको भी अपनी मात्रभाषा (उच्चारण गलत है, मात्रभाषा का, यदि आपने ध्यान दिया हो, लेकिन क्या करो गूगल वाले सही उच्चारण लिखने नहीं दे रहे, ये अलग बात है आप और हमसे ज्यादा, एक डेलावेर की कंपनी हिंदी के लिए इतना कुछ कर रही है), का इतना ज्ञान ना हो की प्रेमचंद, या बेनीपुरी जी के गद्द को समझे, मै तो इसलिए कह रहा था, क्या पता इसी रफ़्तार से हिंदी विलुप्त होती रही तो वो दिन दूर नहीं जब इसके इस भाषा में छपे किताबो को 'rare manuscript' की पदवी मिल जाए, और आपका बेटा, पोता, या परपोता(अब ये इस बात पे निर्भर है की हम कितनी जल्दी अपने इतिहास, संस्कृति, और भाषा से दूर हो पाते है) इसको बेच के रातो रात अमीर हो जाए! आप स्वर्ग या नरक में बैठे बैठे भी, खुश होंगे, जब वो आपको तहे दिल से यहाँ पे आपके गुणगान गा रहे होंगे, कह रहे होंगे, की जीवन में आपने कोई अच्छा काम किया हो या नहीं, ये काम तो बड़ा ही भला किया| आप वहा भी अंग्रेजी के गुण गान इस बात पे गायेंगे, ना ये भाषा होती, ना आपको इतनी दुआए मिलती, अजी, अंग्रेजी में है ही इतना दम| अरे कहने दीजिये जिनको कहना है, इतिहासकारों को या अन्य लोगो को, की, हिंदी में इतनी ताकत है की अपने अन्दर हजारो वर्षो के समाज, इतिहास, साहित्य, संगीत, काम, छल, जीत, गौरव, को समेटे हुए है, अजी ये सब बाते कर्णप्रिय है, बिलकुल उस 'credit card' बेचने वाली उस लड़की के शब्दों की तरह, जहा आपको लगता है, की क्रेडिट कार्ड के बिना तो ये जीवन अधुरा रह जाएगा, बोनस पॉइंट्स नहीं मिल पाएंगे| हिंदी में क्या बोनस है, ख़ाक, अभी भी हिंदी में नहीं लिख रहा हूँ, टाइप तो रोमन में ही कर रहा हु, वो तो गूगल की कृपा है, बताइए भला, ऐसे भाषा पे तो प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए, जिस देश के विद्यार्थी ये पूछे, की "Sir, yesterday, while passing by IIT I happened to notice something. They have written something funny, "भारतीय प्रौद्दोगिकी संस्थान", and now what's that supposed to be? Are they closing IIT, and opening some other institute?"| बन्धु, अब ये भी देख लीजिये हमारे लिए भी आसान होता जा रहा है, कौन गच्चं, गच्चं, गच्छामि करते रहता, सो हमने संस्कृत को भुला दिया....सच बताइए, आप पूर्ण रूप से संस्कृत में लिखे अपने ही वेदों, ऋचाओ, को पढ़ लेंगे.....अजी जरुरत भी क्या है, अब तो उपनिषद्, गीता, अमर चित्र कथा, रामायण, सब अंग्रेजी में मिल जायेंगे| कृष्ण कन्हैया को अभी हमने HEP बना दिया, कृष्णा कर दिया, राम को भी रामा! सब hep हो, प्रभु लोग को ही क्यों छोड़ दे.....

चलिए खैर गनीमत है, सरकारी बाबु लोग भले ही अंग्रेजी में सोचे, हिंदी में एक नाम तो लगा ही देते है...माफ़ कीजिये मेरे कहने का तात्पर्य था, लगा देते थे| भाई, जब कोई समझने वाला ही नहीं बचा, तो लगाये भी क्यों भला, पैसे की बर्बादी, और लोगो के लिए मत्थापच्ची अलग से, अब जरा सोचिये, आप एक तिपहिया वाले के पास जा के कहते है, "भैया, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, चलोगे?" शायद एक दो बार आपको घूरेगा, तब शायद ले जाए(यदि वो उन एक आध लोगो में से हो जो इसका मतलब जानते हो, मै मान के चल रहा हूँ, बिहार या पुरबी ऊ.प्र. के हुए तो, ऐसा भी इसलिए क्युकी कुछ साल पहले तक तो हिंदी का बोलबाला रहा उस तरफ'). अब देखिये ना, ये भी एक तथ्य ही है, की जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती, अमूमन वो गरीब तबके के होते है, क्युकी जिनके पास पैसे होते है, वो अंग्रेजी तालीम हासिल कर ही लेते है, मतलब जग-जाहिर है....हिंदी माने गरीबी, गरीबी मने हिंदी गलत होगा....भाई, आजकल, कौन गरीब आपको शुद्ध हिंदी में वार्तालाप करता हुआ मिलेगा, उसको भी 'doubt' 'tension' होता रहता है, वो भी "भारत के जीत" से ज्यादा खुश ये सोच कर ही होता है, की "India ने आखिरी ball पे six मारने की कोशिश की, नहीं गया, लेकिन runs दौड़ के ही ले लिए, 'not out' भी रहे'!!! भाई साब, अब तो हम 'हिंदी दिवस' मानते है.....काफी अटपटा सा लगता है मुझे, राष्ट्रीय भाषा का एक दिन मान हो जाए, इसलिए हिंदी दिवस बना दिया.....उस दिन भी अखबारों में देख लीजियेगा, कुछ ऐसे छपा होगा, "Today is Hindi Divas. Happy hindi divas"...खैर मैंने लोगो को भाषण देते सुना है हिंदी दिवस पे, हिंदी की महत्ता बताते हुए, गौरवशाली इतिहास के जिक्र के साथ.....अच्छा लगा....की पूरा भाषण कम से कम अंग्रेजी में तो था, वरना ख़ाक समझ में आता!

अब चीन क्यों ना हमें तंग करे, कमजोर को तो हम भी तंग करते है| शुद्ध हिंदी में वार्तालाप करके देखिये, आपको समझ में आ जायगा, नहीं तो बगल वाले तो आपको मेरे इस कथन का अर्थ अपने शब्दों, इशारो, व्यंगों, में समझा ही देंगे! आपको भी लगने लगेगा, अब आप INDIA में रहते है, 'भारत' जैसे किसी जगह पे नहीं| चीन भी जानता है, अमेरिका एक-जुट है, भाषा हो, या कर्म, धर्म पे तो वे लड़ते नहीं, ओबामा के बाद, रंग का भी लफड़ा नहीं बचा, पाकिस्तान तो खुद में ही परेशान है, तो अपनी ताकत का रौब किसपे झाडे...अरे भाई, तो उन्होंने सोचा क्यों ना भारत को केहुनी करे, एक साथ दो-देश तंग हो जायेंगे, एक तो अपना India, एक गरीब, लाचार, किताबो तक सिमित 'भारत' का....दो देश तो है ही, आप मुझे कोई और देश बताइए जहा पे ९८% लोग अंग्रेजी का उपयोग किसी ना किसी मात्र में, तरह से करते हो, और हिंदी का उपयोग शायद ४०-५०% लोग, वो भी त्रुटिपूर्ण, अंगेजी शब्द के मिश्रण के साथ, जबकि हमारा राष्ट्रीय भाषा कुछ और हो, और इस देश की ९५% जनता शुद्ध हिंदी में वार्तालाप ना करती हो..| वैसे आप मेरी इस बात से सामंजस्य रखेंगे की हम कितने भी अंग्रेज क्यों ना हो जाए, गाली देने का मजा....अपने माटी वाले भाषा में ही है, बकचोदी तो हिंदी में ही हो सकती है, है न??
अरे साहब कुछ लोग तो ये भी कहते है की हमारा देश विकाश कर रहा है, महंगाई, गरीब और अमीर के बीच का अंतर या ...खैर, जो भी हो, लोग कहते है ये सब अंग्रेजी की वजह से हो रहा है.....मालिक मै समझ नहीं पता, यदि मापदंड ये है तो चीन, जापान, कोरिया, या फिर जर्मनी या अमेरिका ये सब अपनी देश के राष्ट्रीय भाषा के साथ कैसे प्रगति कर रहे है....शायद कोई विशेष भेद हो!
यदि ऐसी बात है, तो फिर हम नेताओ को, मुनाफाखोरों को, दलालों को क्यों गाली देते है...भाई जब हमने अपने इतिहास या अपने भाषा से रूबरू ही नहीं करवाया गया तो क्यों हम देशभक्त होंगे, क्यों हो हम भला .....हम तो अमेरिका के ही देशभक्त रहेंगे....!!!! चीन में पता नहीं लोग, कैसे अंग्रेजी बोले बिना जिन्दा है, और तो और महाशक्ति के रूप में उभर आसान है, जापान में भी अंग्रेजी नहीं बोली जाती, वो फिर भी प्रगति कर चुके, अरे अंग्रेजी बोले बिना, मरे कैसे नहीं.....उफ ये तो कोई साजिश प्रतीत होता है| संसद में एक बार लत्तम जुत्तम इस बात पे होना ही चाहिए....भले वो अंग्रेजी में ही क्यों ना हो....


खैर, अब goodnight लोग बोल के गए है, तो सो जाता हूँ, लेकिन आपलोग मेरे इन शब्दों का printout करवाके रख लीजियेगा, शायद, जब 'rare manuscripts' मिले तो उन्हें कुछ समझ में आ जाए, अंग्रेजी साहब बहुत ही पिरोया हुआ है, ishhtyle से, inglissh में! कोशिश की है मै बोलचाल वाली "हिंदी" में ही publish करू, फिर भी कुछ doubt हो तो comment करके clear कर लीजियेगा| और हां, हिंदी में उच्चारण जगह जगह पे त्रुटिपूर्ण हो सकते है, गूगल वाले उसको सही करने का option ही नहीं दे रहे!