Sunday, June 4

A jar of sugar cube and IMFL whiskey


A sugar cube, he always took a sugar cube in his black tea. That old aluminium kettle with a piping curved mouth, and a base which had blackened due to being put on the fire stove for minimum dozen times a day. More than often, it faced water in it evaporating and the leaves being starched of everything it could infuse! The tea was always poured into the glass in which the IMFL whisky used to be poured in the evenings, when in background songs of Oliver Michael, Bryan Adams, Elton, Sharda Sinha, Bhikhari Thakur, Kishore Kumar etc played! She wanted him to drink scotch, which defines and creates distinctions about one's personality. Single Malt or double, it was a one off occasional thing for him, not something he liked to do. Scotch resembled his part of the personality which used to charm and sweet talk, easily taken as flirting, with almost everyone he met, but that never provided him solace, his solace lay in the IMFL, him which was him, devoid of refinement of words, thought process. Meanwhile in the background, one could hear visceral songs, which could move stones to tears, but not the person who used to lay on his sofa with a smile, while he used to read anything and everything. One’s own company, that’s all he sought. And this desire brought him to a nondescript village in a far flung area close to borders of Burma! He used to smile seeing the ferns, flower, beetle, and the ‘Kadamb’ tree he had sown in front of the wooden gate, which bore the name plate which inscribed just one word, ‘kadamb’! She used to make the best Kadamb chutney in the world, and he used to come from behind hold her in his arms, and whisper, ‘My sugar cube, you fit in my world perfectly. There is nothing else I need. You are everything that I ever asked for.’ The only semblance of her in his life now, was ‘Kadamb’ his house, and the sugar cubes in the glass jar kept on his study table! He lay thinking about his ‘Sugar Cube’, when somewhere in the background was a song being played which brought a smile to his lips, and saline to his eyes. ‘Hazar rahein mud ke dekhi, kahi se koi shada na aai. Badi wafa se nibhayi tumne, hamane thodi si bewafai’

Sunday, March 4

बेख्याली के कुछ क्षण

यादों को संभालना कैसा होता होगा,
जबकि मेरे पास तुम्हारी कोई निशानी नहीं....
कुछ पल है खट्टे मिट्ठे से, आधे कच्चे से...
कुछ बुरे और कुछ अच्छे से ....
लेकिन निशानी के तौर पे कुछ नहीं�!!!

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एक शाम है रौशनी वाली,
एक दिन है पसीने से लथपथ
एक मुस्कान तुम्हारी बंद है मेरे आँखों में
कुछ अधूरे से सपने है साखों में...
लेकिन निशानी के तौर पे कुछ नहीं!

 


सुरीली और धमकी वाली आवाज़
बंद है जेहेन में कही....वहाँ से भी हुक्म चलाती है...
वो पहली बार की, मेरे रोएँ की सिरहन साथ है
फोन पे वो बितायी पहली पूरी रात है!
लेकिन निशानी के तौर पे तो कुछ भी नहीं!!

Wednesday, February 15

एक बेचारी लड़की

तुम कॉल करती हो, मैं काट देता हूँ
डिस्कनेक्ट भर कर के, सोच लेता हूँ
छु लिया तुम्हारी बच्चों के जैसी उँगलियों को,
जिसने मेरा फोन मिलाया है!

उरद दाल के पकोड़े के तरफ देखता भी नहीं,
नहीं, अब वो तुम्हारी याद नहीं दिलाती
बस रुला देती है, छलका देती है...
और, पकोड़े और भी नमकीन हो जाते है!

मैं अब तेज बाईक भी नहीं चलाता
तुम्हारे कहने पे नहीं, बल्कि अपनी वजह से
अब तेज चलने पे अब कोई डरता नहीं
न ही जोड़ से कोई पकड़ता है, पीछे से....!!

अब रात में मैं सारे लाइट जला के सोता हूँ..
तुम्हारे सपनो से डर लगता है
हमेशा झगड़ते है हम, मेरे सपनो में
और जीवन भर साथ भी रहते है! उफ़फ...

अब जाता नहीं उस रेस्तराँ में,
तुम्हारी वजह से...सिर्फ तुम्हारी वजह से
एक बार ठूस ठूस कर खिलाया था तुमने
उठ तक नहीं पाया था मैं खुद से!

अब मैं सिगरेट के ब्रांड भी बदल के पीने लगा हूँ
तुमने एक दफा मेरे ब्रांड की सिगरेट पी ली थी..
और मेरे जन्मदिन पे तोहफे में,
उस ब्रांड के कई खाली डिब्बे भेजे थे!
(कसम से, खाली था...या तो फिर डाकिये ने पी लिए होंगे)

अब व्हिस्की ऐसे ही पीता हूँ, बिना मिलावट के
क्यूँकी आइसक्युब में तुम्हारा चेहरा नज़र आता हैं,
वैसे ही चिकनी, और आँखे वैसी ही शराबी
तुम्हारी कमी ने पीना सीखा दिया!

अब इस शहर में बरसात अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे शहर ने बहुत सारी दूरियाँ बना दी है
मैंने पहले ही तुम्हे चेताया था, मेरे डर हमेशा सच हुए है
अब मुझपे इस बात का भी दोष मत मढ़ देना!

समय का अब अंदाज़ नहीं रहता...
बस वही एक चीज़ मांगी थी तुमसे
लेकिन, तुम जिद्दी तो हमेशा से थी...
मेरी बात मानी ही कब थी....जो अब मानती!

एक मोबाइल प्रदाता के इश्तिहार में देखा था
"आप अपनों से कभी जुदा नहीं होते हमारी दुनिया में"
ऐसा वादा क्यों नहीं किया तुमने...
खैर, खुश रहो तुम अपनी दुनिया में!!!

शिकायतों का सिलसिला

शिकायतें तो होंगी तब भी, जब हम ना होंगे...
वैसे ही, जब तुमने मुझसे नहीं, एक चोले से प्यार किया था!
बेशक तुम हमपे बदल जाने का आरोप थोपो
बदले तो हम तब भी थे, जब तुमसे इश्क किया था...

 


निगोड़ी इश्क का फितूर ही कुछ ऐसा है जानेमन....!!!