...फिर ये रात गुज़ारने पे मजबूर हुआ,
सोचा था, अब सीधा सुबह से सामना होगा
पर, फिर ये रात गुज़ारने पे मजबूर हुआ
दिन में जिन सपनो पे मेहनत किया
उन को रात के सपने लील जाती है
और एक सुबह दे जाती है...
फिर एक दिन सपनो पे काम करने छोड़ जाती है
और फिर, ये रात आती है
अपना वही रूप लिए, तम का आँचल ओढ़े
मै फिर जगता हू, अपना प्रण छोड़े, अपनी जिद तोड़े ....
...और फिर ये रात गुजरने पे मजबूर होता हू!
~जिद्दी मै नहीं, ये रात है.....मुझे हराने को तत्पर, स्थिर.....लेकिन मै एक दिन सारे हिसाब चूका के रहूँगा, उस रात चैन की नींद सो के रहूँगा! शुभ रात्रि!